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सच्चा योगी / शब्द प्रकाश / धरनीदास

वचन विवेक विभूति, साँच शिर जटा जमावै। सत गुरु-शब्द-सनेह, श्रवण मुद्रा पहिरावै।
सींगी सूर अलोप, चोप चित चक्र चलावै। ज्ञान-गुफा में वेठि, क्षमा को छला विछावै॥
अष्ट कमल दल उलटिके, प्रीतम साँ परिचय करै।
धरनी सोइ योगीश्वरा, जीवत हीं जग निस्तरै॥14॥