मन को माला विमल, तत्त्व को तिलक चढ़ावै। दया टोप शिर धरे, ज्ञान गूदरा सो हावै॥
आसन दृढ़ करि आरवंद लडवा लौ लावै। मोर पक्ष सन्तोष, सहज कूवरी करावै॥
धुनी धनी को ध्यानंकरि, साधुसंगती कुशल तरु।
धरनी जो अनुराग होइ, ऐसी विधि वैराग करु॥13॥
मन को माला विमल, तत्त्व को तिलक चढ़ावै। दया टोप शिर धरे, ज्ञान गूदरा सो हावै॥
आसन दृढ़ करि आरवंद लडवा लौ लावै। मोर पक्ष सन्तोष, सहज कूवरी करावै॥
धुनी धनी को ध्यानंकरि, साधुसंगती कुशल तरु।
धरनी जो अनुराग होइ, ऐसी विधि वैराग करु॥13॥