सच्ची कविता जय-पराजय का हिसाब नहीं रखती
वह न त्याग से लथपथ है न किसी भोग से
बेवजह चीजों से घिन करना भी उसका स्वभाव नहीं
वह किसी करिश्में की तलबगीर नहीं है
उसका कद सामान्य है और वजन भी सामान्य
उसे चीजों का वैसा ही होना पसंद है जैसी वे हैं
अपनी सीमाओं और विविधताओं में मौलिक
जहाँ अनेकता की एकता का सच्चा बसाव है
कोई वायदा, कोई आश्वासन नहीं है वहाँ
पर एक उम्मीद है जीवितों की भाषा में
पीढ़ियों से जिसकी रखवाली की है मनुष्यता ने
वह जानती है स्वतंत्र होने का मतलब
जिम्मेदार होना है हर शै के प्रति
वह हार सकती है स्वयं के विरुद्ध
पर दूसरे की जमीन नहीं हड़पेगी।