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सच / विश्वनाथप्रसाद तिवारी

दूर दूर
कहीं कुछ नहीं
न फूल न गंध

बस एक मलबा

टूटे खम्भे, खण्डित मूर्तियाँ
और एक याद
जो एक गूँगे समय की है

क्या बनाऊँ ?

सोचता हूँ
और टटोलता हूँ मलबा

सच क्या है
जो लिखूँ और गुनगुनाऊँ ?