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सच कभी मरता नहीं / मनोज चौहान

सच कभी मरता नहीं
गुम जाता है बेशक
झूठे सबूतों की
किसी गहरी अँधेरी खाई में
या फिर जीता है ताउम्र
फर्जी मुकदमे में
सजा पाए कैदी के संग l
 
दिखता है आतुर
इंसानियत, ईमानदारी
और स्वाभिमान
जैसे शब्दों की चिताओं पर
विलाप करने को l

सच मरा नहीं
सुकरात को जहर
देकर भी
खोखली मान्यताओं
और रुढ़िवादी सोच पर
जब हावी हो गया था
उसका तर्कशास्त्र l

सच से भयभीत है
आज फिर
एक मौकापरस्त
कुटिल जमात
तथाकथित
सत्तालोलुप
रसूखदारों की l

लकवाग्रस्त मानसिकता का
वायरस फैलाकर
हो रही है तैयार
दिमागी अपाहिजों की फ़ौज
बैशाखियाँ थमाए
जिनका नेतृत्व कर
वे भोगना चाहते हैं
सत्ता सुख l

सच की परखनली में
होगी रासायनिक क्रिया
विद्रोह की
मिलेगा उत्प्रेरक हौसलों का
प्रस्फुटित होंगे
क्रांति के बीज
समाप्त होंगी
लोभियों की ये नस्लें
डायनासौर की विलुप्त हुई
प्रजाति की तरह!