Last modified on 1 जुलाई 2010, at 14:08

सच बता………… / सांवर दइया

कितना अच्छा था वह दिन
भले ही अनजाने में लिखे थे
और अक्षर भी ढाई थे
लेकिन उनमें समाई दिखते थी
      पूरी दुनिया
 
और आज
कितना स-तर्क होकर
रच रहा हूं पोथे पर पोथे
झलकता तक नहीं जिसमें
मन का कोई कोना

सच बता यार !
ऐसे में क्या जरूरी है मेरा कवि होना ?