सच में, सजनी
छूमंतर हो गए इन दिनों
ख़ुशियों वाले दिन
यानी बच्चों का हँसना
चिड़ियों का ख़ूब चहकना दिन-भर
कभी चुलबुली बरखा में
कुछ देर भीगना बाहर-भीतर
आँगन-दालानों में
अब हैं नहीं दीखते
वे पिछले धौताले दिन
रोज़ तुम्हारा कनखी से बातें करना
सब से छिपकर
और बाँचना होंठों-होंठों में ही
मीठे ढाई आखर
मुश्किल यह है
यादों में अब भी रहते हैं
रसभीगे मतवाले दिन
बरस-दर-बरस
इन्हीं दिनों
बस्ती में फगुआ बौराता है
रंगों की फुहार में
सब का आपा जैसे खो जाता है
तुम्हें दिखे क्या
वे आवारा शोख़
गले में मफ़लर डाले दिन