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सजनी देखे / कुमार रवींद्र

सजनी, देखे
शिशु-वसंत के फूल खिले जो
 
सुनो, किसी के
नये प्यार की जैसे ये
पहली घटनाएँ
काँप रही हैं टहनी-टहनी
कोंपल होने की इच्छाएँ
 
देखे, सजनी
पत्ते-पत्ते
नेह-झकोरे -अभी हिले जो
 
धूप-छाँव के इस खेले में
लहरें कैसा नाच रहीं हैं
किसी यक्ष की
नाम प्रिया के
पाती जैसे बाँच रही हैं
 
सजनी,थे वे
मेघदूत ही
उधर क्षितिज पर अभी मिले जो
 
सुन वसंत की हँसी
हुईं साँसें भी सुर में
गूँज रही धुन वंशी की
किस अन्तःपुर में
 
सजनी, तोड़ो
मन के भीतर
वर्जनाओं के बने किले जो