सजल-जलद-नीलाभ श्याम वपु मुनि-मन-मोहन।
अमित शरद-शशि-निन्दक मुख मनहर अति सोहन॥
कुचित कुन्तल कृष्ण अपरिमित मधुकर-मद-हर।
रत्नमालयुत कमल-कुसुम शिखि-पिच्छ मुकुट बर॥
चिा-विा-हर नयन, रत्न-कुण्डल श्रुति राजत।
मुक्तामणि वनमाल विविध कल कण्ठ विराजत॥
रत्नमयी मुँदरी, कङङ्कण, भुजबंद भव्य अति।
वंशी धर कर-कज भर रहे सुर सुललित गति॥
कटि पट पीत परम सुन्दर, पग नूपुर-धारी।
मृदु मुसकान विचित्र नित्य ब्रज-विपिन-बिहारी॥