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सज्जनों से विनय / मुंशी रहमान खान

विनय करहुँ कर जोरि युग और नवावहुं शीश।
करियो कृपा विद्वजन अरु दीजो आशीश।। 1

शायद पुस्‍तक में कहीं भूल देखियो मोरि।
क्षमियो जान अजान मोहिं विनय करहुँ कर जोरि।। 2

नहिं कहिहों कुछ द्वेष भाव से ईश्‍वर मोर गवाह।
जानत सब के हृदय की जिनके चरित अथाह।। 3

दीन जान करिहें कृपा हैं वे कृपा निधान।
वर्तमान में होय जस सोइ कहिहें रहमान।। 4

पढ़ियो सुनियो प्रेम से धर ईश्‍वर का ध्‍यान।
तुम्‍हें बढ़ै रुचि धर्म पर और बढ़ै बुधि ज्ञान।। 5

गुण वासर सिधि अवनि की वर्ष इस्‍वी जान।
मास शास्‍त्र तिथि तत्व को यहँ आयो जलयान।। 6