गुन को गहि यहि खेत में नमैं सुबंसज दोय ।
कृसितन जीवन देत हैं पीछे गुरुता होय ।।
पीछे गुरुता होय कूप तें आदर पावैं ।
ऊँच कहैं सब कोय अमृत घट पुन्य सुहावैं ।।
बरनै दीनदयाल धन्य कहिये जग उन को ।
सहिं दुख सुख दैं सबै सरल अति हैं गहि गुन को ।। ६४।।