Last modified on 20 जून 2019, at 13:00

सडकें सोती नहीं कभी / इधर कई दिनों से / अनिल पाण्डेय

हम सो रहे होते हैं
रो रही होती हैं धारणाएं हमारी
हो रही होती है कुन्द मानसिकता
गढ़ रही होती है षडयंत्र कोई

सड़कें सोती नहीं कभी भी

कर रही होती हैं इन्तज़ार किसी आगन्तुक का
हो रही होती हैं खुशी
चल कर कोई पहुंचेगा अपने नीड़-निज पर

हम सो रहे होते हैं
कोशिश कर रहे होते है
भटके कोई अधिक अपने रास्ते से

भटकता नहीं कोई
लेकिन हम भटक रहे होते हैं लगातार
भटकते रहते हैं बार बार।