सड़कें ख़ाली करो कि बच्चे आते हैं!
एम्बुलेंस, फायर ब्रिगेड को
जैसी जल्दी होती है,
कुछ-कुछ वैसी ही हम
बच्चों की सरदर्दी होती है।
पर शहरों के लोग समझ कब पाते हैं!
वी.आई.पी. गुज़रें तो
कुछ और नज़ारा होता है,
उन्हें पता क्या बच्चों का
किस तरह गुज़ारा होता है।
पेपर देने तक से वे रह जाते हैं!
कॉलोनी के अन्दर अब
घुसपैठ हो चुकी कारों की,
नहीं किसी को चिन्ता है पर
बच्चों के अधिकारों की।
वैसे बाल-दिवस पर क़समें खाते हैं!
सड़कें ख़ाली करो कि बच्चे आते हैं!