परछाईयों के जाल पर
थके कदमों की वापसी
रोज़ की बात है
कभी-कभी लगता है
अब कुछ नया नहीं
फिर भी
तारकोल बिछी सड़कों से हटकर
गाँव के कच्चे रास्तों पर
धड़कते हैं
भागते एक बच्चे के
दो किशोर पाँव !
परछाईयों के जाल पर
थके कदमों की वापसी
रोज़ की बात है
कभी-कभी लगता है
अब कुछ नया नहीं
फिर भी
तारकोल बिछी सड़कों से हटकर
गाँव के कच्चे रास्तों पर
धड़कते हैं
भागते एक बच्चे के
दो किशोर पाँव !