माणिक अधर, नीलमी आँखें
ये पुखराज बदन
मन घायल कर गई तुम्हारी
हीरकनी चितवन
श्वेत शिला-सी दिपे
मोतिया
अँगिया कसी-कसी
रखनख-मणि, पन्नई
चूनरी
लहरे नागिन-सी
कैसे पाए प्राण जौहरी
ये अनमोल रतन ?
पग पर मूँगा रंग
महावर
शीश कटी मछली
हाथों पर गोमधिया
मेंहदी
सतरंगी तितली
कोमल काया से क्यों बाँधा
इतना पाहनपन ?