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सतवाणी (11) / कन्हैया लाल सेठिया

101.
विपद पड़्यां सागै रवै
इस्या कठै है सैण ?
सिंझ्यां पड़तां मींचसी
पंथी मारग नैण,

102.
आंख अंधेरै स्यूं मिला
मत सूरज नै देख,
नागै सत रै तेज नै
सहणो कठण चनेक,

103.
हर सिरजण रै मूळ में
बैठी मोटी पीड़,
गीत बणै जद काळजै
मोटो उठै हबीड़,

104.
दीसै देतो हाथ स्यूं
लेतो कोई हाथ,
किण रा देणा पावणा
आ जाणै जगनाथ ?

105.
जतै भागसी राम री
दीठ कनक म्रग लार,
रावण हरसी जानकी
लांघ लिछमणी कार,

106.
कीड़ी कण, मण रो करै
हाथी आप जुगाड़,
मंगतो बण मोटा मिनख
मती माजनो पाड़,

107.
इंछै कोनी कीं जको
दान भूलज्या दे’र,
इस्यै मिनख रै सामनै
मंगतो साव कुबेर,

108.
हीरां रा खाजा कर्या
गज मोत्यां री खीर,
सूखो टुकड़ो चांवतो
भूखो गयो फकीर,

109.
फिरै मांगतो भूंगड़ा
ओढ्यां रेसम षाळ,
समझी तू अवधूत बो
बोली वचन संभाळ,

110.
दीक्ट पर दिवलो चसै
बारै गयो उजास,
इंयां सुजस, सौरम, कुजस
घर में करै न वास,