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सतवाणी (15) / कन्हैया लाल सेठिया

141.
मोटा घणा मतीरिया
जाबक माड़ी बेल,
चिप जामण स्यूं बापड़ी
सकी कूख नै झेल,

142.
हर कोई नै पुरस मत
मती करी मनवार,
अपच हुयां बणसी गरळ
अमरित गरिठ विचार,

143.
सुजा मती सिर सबद रो
जता अणूंतो लाड,
चेतण ओ बणज्या नहीं
चेत गळै रो हाड,

144.
चढा कसौटी पर मती
ज्यासी सुवरण छीज,
इंयां अंतस्याणो क्रपण
गाहक गयो ठगीज,

145.
घड़ो, कूंजीयो, माटकी
माटी रा आकार,
दीसै उंडी दीठ नै
माटी आप कुमार,

146.
जाबक काचा सूच जद
सागै गया बंटीज,
मारकणो गोधो गयो
बां स्यूं ही नाभीज,

147.
बादळ छंटग्या पण कठै
जावै ओ गिगनार ?
कीं कोनी बीं रो सकै
कुण सांवट विसतार ?

148.
छोटी पोटी सबद री
किंयां समावै साच ?
दीसै रूप, अरूप नै
दिखा सकै कद काच ?


149.
अंतर तप लाग्यां बिन्यां
काचो भांडो ग्यान,
चिनीक तिसणा कांकरी
देवै खिंडा मंडाण,

150.
माळी गोरो चनरमा
सींची बाड़ी रात,
नखत पुसब कुचल्या खुरां
बड़ गोधो परभात,