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सतवाणी (20) / कन्हैया लाल सेठिया

191.
रतन जड़ाया मुगट में
चुग चुग घणां अमोल,
जड़ियो ली बुध-मिण चुरा
चूकी दीठ डफोळ,

192.
काम भूख री दीठ स्यूं
मिनख डांगरो एक,
पण पिसतावै मिनख जद
जागै हियै विवेक,

193.
मत मोल्योड़ै ग्यान रै
हियो अडाणैं राख,
थारी बुध री मिण ढकै
क्यूं तू गोबर नाख,

194.
दूज चांद बरतै जिस्यो
पाटी काळी रात,
बारखड़ी तारा बगत
लिखै भुजाणै प्रात,

195.
किंयां ल्या’र मूरत घड़ी
इस्यो बजर पाषाण ?
इण रो हियो पसीजसी
कद दुख जग रो जाण ?

196.
पैली भींची किड़किड़यां
पछै भींचली जाड़,
मैं समझ्यों ओ कांकरो
लाग्यो पछै पहाड़,

197.
आंक घटा दै आंक नै
आंक आंक नै जोड़,
कोनी कीं घटा बद हुवै
रैसी आखर ठौड़,

198.
कोनी सत रो सबद स्यूं
समधरमी समबन्ध,
सत री भासा मून है
जिंयां फूल री गंध,

199.
तू सबदा री भीड़ कर
जग्यां न राखी सेस,
कोरो कागद भाखतो
थारो गूढ सनेस,

200.
गई महक उठ गगन में
छमक्यो जणां बघार,
करम चीकणां खय हुयां
खुल्यो मुगत रो द्वार