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सतवाणी (32) / कन्हैया लाल सेठिया

311.
जाबक नान्ही कांकरी
नीर गहन गंभीर,
पण मत फेंकी पीड़ स्यूं
सगळा हुवै अधीर,

312.
बडा हुवै बां नै नहीं
निज बडपण रो मोद !
मोती री मैं मावड़ी
नहीं सीप नै बोध,

313.
अपण हुवै सत कद मंडै
भोळा उण रा खोज ?
क्यूं निरथक भमतो फिरै
सत अंतस में सोझ,

314.
करै नहीं ज्यूं रूप नै
बिम्बित आंधो काच,
बिनां हुयां निरमळ हियो
कद अणभूतै साच ?

315.
मुगती रो गेलो नहीं
बंधी बंधाई लीक,
बठै पूगसी संत बै
चालै जका अलीक,

316.
बाथ घाल ली सबद रै
बणग्यो सबद बळाय,
सिंघ अपड़ियो स्याळियो
जे छोड़ै तो खाय,

317.
चावै देणी साच पर
जे तू थारी छाप ?
साच सिरक ज्यासी परै
बा कद सवै धिणाप ?

318.
ममता नै समता बणा
अनुकंपा में जाग,
जणां समझसी जीव तू
कांईं राग अराग ?

319.
घणो गहन आतम धरम
पूगै बठै अभेद,
दीठ साध लै लोपसी
बीं खिण सगळा भेद,

320.
हेला मारै मजल नै
धरैन आघो पैंड,
संवटीजै गेलो नहीं
इंयां हुयां स्यूं एंड,