तुम कुल दीप चलो
बार-बार आती पुकार यह
भारतीय ही रहे हार सह
तुम भारत के वीर कौन तुमसे बोलेगा
कौन है जो तेरे आगे अपना मुँह खोलेगा
तुम्हीं भोर के बाल अरुण रवि, गगन दीप्त कर दो
जिसके कुल का एक सिपाही, शरहद पर मारता है
उसके सात पुश्त ऊपर का पापों से तरते है
स्वर्ग द्वार पर सुमन माल ले देवों की सुकुमारी
तेरे लिये खड़ी हैं पारियाँ सज आरती थाली
मर कर भी तुम अमर शहीदों इस जग में जस ले लो