जिस में तेरा नहीं विकास,
ऐसा कोई फूल नहीं है।
मैंने देख लिया सब ठौर, तुझ-सा मिला न कोई और,
सब का एक तुही सिरमौर, इस में कुछ भी भूल नहीं है।
तुझ से मिल कर करुणा-कन्द, मुनिवर पाते हैं आनन्द,
तेरा प्रेम सच्चिदानन्द, किस को मंगल-मूल नहीं है।
प्रेमी भक्त प्रमाद विसार, मांगे मुक्ति पुकार-पुकार,
सब का होगा सर्व सुधार, जो पै तू प्रतिकूल नहीं है।
तेरे गाय-गाय गुण ग्राम, करनी करते हैं निष्काम,
मन में है ‘शंकर’ सुखधाम, जिनके संशय शूल नहीं है।