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सत्य सनातन नया नया / प्रेमलता त्रिपाठी

शिक्षित हुआ समाज कहें, जीवन यापन नया नया।
करें न खोखला मूल हम, सत्य सनातन नया नया।

धारा विकास की कहती, हितकारी जो हो सकता,
करना वह निर्माण सजग, कृषि उत्पादन नया नया।

रच रहा इतिहास भारत, धरती से है, शून्य सदन,
हर्फ जुड़ेगा स्वर्णिम यह, पृष्ठ प्रकाशन नया नया।

चाले ढालें नित्य नयी, संस्कृति को मत तार करें,
अपराधों का बोध नहीं, लगता लांछन नया नया।

मौन कई प्रश्न आज भी, वह अनदेखे कैसे हों,
राजनीति की बिसात पर, मन पावन हो नया नया।

कभी नर्म हो गर्म कभी, रिश्ते लगते प्यारे सब,
कुछ करिए वह अलग-थलग, हो मनभावन नया नया।

ज्ञान ध्यान हो निर्मल जब, कटी निरंतर बाधाएँ,
आत्मबल नित चाहिए हो, प्रेम पुरातन नया नया