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सत्संग / रामधारी सिंह 'काव्यतीर्थ'

ज्ञान-प्रचार
प्रवचन, सत्संग
दै उपदेश ।

कङ्रोॅ सिद्धांत
हरिभजन बिना
भवपार नै ।

भक्ति नै पावै
शिव-भजन बिना
राम के कोय ।

महामंत्रा जे
जेकरा महेसें जपै
मुक्ति रोॅ शिक्षा ।

लघुमंत्रा जे
विधि हरिहर केॅ
गज-अंकुश ।

बितत चले छै
संसार गतिशील
धर्म निश्चल ।

सब्भे टा सुख
तुल्य नै हुएॅ सकेॅ
लव-सत्संग ।