वर्ष 1943 दीपावली के दिन अलीगढ में जन्म लिया उस समय के हास्य सम्राट काका हाथरसी ने बचपन पर किसी मंच पर नाम रखा दिया पटाखा हास्य जगत में कर दिया धमाका एक पत्र में लिखकर दे दिया आशीर्वाद तुम हो पटाखा हम हैं काका हास्य रस नें दाकें डाका "दिन दूनी उन्नति करो बेटा प्रेम किशोर इतनी ख्याति मिले तुम्हें होए विश्व में शोर" बस वही शोर पकड़ लिया जोर मंच पर होने लगी वन्स मोर वर्ष 1963 से ही काव्य मंचों पर छा गए कवि सम्मेलनों में आ गए उस समय के दिग्गज मंच कार नामी गिरामी सुपरस्टार देने लगे प्यार पदमश्री गोपाल प्रसाद व्यास, डा. ब्रजेन्द्र अवस्थी, श्री रमई काका, श्री ओम प्रकाश आदित्य, डा. गोविन्द व्यास, श्री अल्हड बीकानेरी श्री माणिक वर्मा, श्री शील चतुर्वेदी, श्री प्रदीप चौबे, श्री जेमिनी हरियाणवी, श्री हुल्लड़ मुरादाबादी महफ़िल जमा दी वर्ष 1968 में काव्य की पहली रचना छपी "साली को सर्वेश्वर मानो" इसकी प्रेरणा मिली श्री व्यास जी की पुस्तक "पत्नी को परमेश्वर मानो" पुस्तक की भूमिका भी श्री व्यास जी के द्वारा ही रची गयी आपकी कलम से उसमे कई बातें थी नईं आपने लिखा- कुछ लोग था या थी पर विशवास करते हैं पटाखा जी उनमे से हैं जो है पर विश्वास करते हैं है तो ठीक नहीं तो वो मनवा कर रहेंगे मैं अपनी खेती को देखकर मगन हूँ l वे मगन हुए और हम अपनी लगन से साहित्य सृजन में जुट गए जिस दिन अपोलो ने चाँद पर पहली जम्प ली हमारी व्यंग्य की पहली फुलझड़ी लखनऊ से प्रकाशित दैनिक नवजीवन में नए स्तम्भ में छपी बस उसी दिन से हास्य व्यंग की फुलझड़ी लिखने का सिलसिला हो गया शुरू इसके लिए भी पं. गोराल प्रशाद व्यास जी ही थे हमारे गुरु इधर काव्य मंचों पर भी मिलने लगी दाद वर्ष 1977 के आस पास हम आ गए गाजियाबाद, गाजियाबाद आते ही दिल्ली में होने लगे धमाके डायमंड पॉकेट बुक्स से पुस्तक छपी "पटाखे ही पटाखे" हर तरफ छ गए हम, पटाखा हो गया बम पुस्तक प्रकाशन में भी बजने लगी सरगम अर्थात वर्ष १९८६ से अब तक पुस्तक दर पुस्तक पेंसठ साल की उम्र में साठ से भी अधिक पुस्तकें बुक स्टॉलों पर नज़र आने लगी तबियत खिलखिलाने लगी