2.मानव अधिकार - शम्भु चौधरी
जेल में बंद एक अपराधी, आयोग से गुहार लगाई।
हजूर!
मैं अपराधी नहीं हूँ, कत्ल के आरोप जो लगे हैं
अदालत में न कोई गवाह, न उनके कोई सबूत मिले हैं ;
और जो कत्ल हुए हैं उनके गुणाहगार सत्ता के मुलाज़िम हैं।
मैने तो बस पेट के लिये उनका काम ही किया है,
हजूर!
ये लोग रोज मुझे मारते-पिटते और मुझ पे ज़ुल्म ढाते हैं,
तड़पा-तड़पा के पानी पिलाते व दो दिन में एक बार ही खिलाते हैं
कड़कती सर्दी में रात को कम्बल छिन कर ले जाते हैं,
दवा के नाम पे ज़हर देने की बात दोहराते हैं।
हजूर!
ऎसा लगता है, आकावों के डर से मुझे डराते और धमकाते हैं,
भेद ना खुल जाये, इसलिये बार-बार आकर मुझे समझाते हैं
मुझे डर है कि ये लोग मुझ से भी बड़े अपराधी हैं
जो कानून की शरण में सारे गैर-कानूनी हथकण्डे अपनाते हैं।
हजूर!
मैं न सिर्फ निर्दोष, गरीब और बाल-बच्चेदार भी हूँ,
घर में मेरी पत्नी और बीमार माँ परेशान है,
मेरे सिवा उनको देखने वाला न कोई दूसरा इंसान है,
बच्चे सब छोटे-छोटे, करता मैं फरियाद हूँ।
हजूर!
ये लोग जान से मारने का सारा इंतज़ाम कर चुके हैं,
अदालत से कहिं ज्यादा इनका ख़ौफ़ देख
करता मुझे हैरान है, कल तक मैं सोचा करता था,
शहर का सबसे बड़ा अपराधी मैं ही हूँ,
इनकी दुनिया देख तो लगता है मैं तो कुछ भी नहीं हूँ।
हजूर!
मै मानव हूँ, मुझे भी जीने का अधिकार है,
आप ही मेरे कृष्ण भगवान हैं, इस काल कोठरी में दिखती ;
एक मात्र आशा की किरण, जो आपके गलियारे से आती दिखाई देती है।
इस लिये है मानवाधिकार!
हजूर!
आपके शरण में मैं खड़ा हूँ!
आपके शरण में मैं खड़ा हूँ!
-शम्भु चौधरी, एफ.डी.-453, साल्टलेक सिटी, कोलकाता-700106