Last modified on 18 अक्टूबर 2009, at 11:08

सदियाँ बीत गयी / राजीव रंजन प्रसाद

कितनी सदियाँ बीत गयीं
बुलबुल नें अपना दिल बोया
रोयी तो सींच गये आँसू
नन्हा सा अंकुर फूट पडा

सैय्याद जाल में फांस गया
अब बुलबुल पिंजरे में गाती थी
याद उसे अब भी आती थी
नन्हा सा अंकुर फूट पडा है
दिल एक पेड बन जायेगा
फिर फूलों से लद जायेगा..

आकाश भरा था आँखों में
रोती थी चीख चीख रोती थी
सैय्याद समझता था गाती है
एसे ही बुलबुल मर जाती है

दिल अब बरगद हो आया है
उसकी छाती में छाया है
फूल मगर कैसे खिलते हैं
बुलबुल गा जाये तो जानें...