{{KKCatK avita}}
अरसा हो गया उससे मिले
सुना कि अब वह पापा-मम्मी बोलने लगी है
पास होती
तो नाम ले पुकारती मुझे भी
नुतुल नुतुल
या जाने क्या-
पर जिस तरह भी पुकारती
अपना नाम ही सुनाई देता मुझे
और लगता कि नुतुल नाम ही अच्छा है
यह भी सुना कि
अपने हिस्से- की चीजें वह
खिलाने लगी है लोगों को
तो मुझे भी खिलाती टाफियां
चाहे झूठ-मूठ का ही बढाती मेरी ओर
और सचमुच का खा जाता मैं
और वह रोती बुक्के फाडकर
या कोई अखाद्य मांगती
और ना देने पर
मूडी गाड लेती बिछावन में
तब उसे मनाता मैं
ले आता बाहर
देखो मुनचुन कौआ, कुत्ता देखो
तब वह नीचे उतर
खुद उन तक जाने की जिद करती
तब उतार देता नीचे
और वह इतना तेज भागती
कि गिरने को होती
कि लपक लेता मैं
उसके नहीं होने से
कैसे खाली लगते हैं हाथ
कि ऐसे हल्के फूल कहां और
दुनिया में
कि कंधे पर
उसका चुप सिर समोकर
पड रहना
भर देता है कैसी
लहरिल शांति से
कि दुलकते हुए
उसका मेरी ओर बढना
अब फिर नहीं होगा
कि भागती आएगी अब
और झूल जाएगी
या पता नहीं क्या ...कैसे...।