एहो तोख कुलोभ तम को तोलों है बास ।
जौलों नहिं रबि रूप तुम प्रगटत हृदै अकास ।।
प्रगटत हृदै अकास लाभ लघु मुद जुगुनू के ।
दुख दीनता मलीन उलूक रहैं ढिग ढूके ।।
बरनै दीनदयाल लोभ को कब भय देहो ।
तुम बिन सुख नहिं रंच सुनो सन्तोख अए हो ।। ५४।।
एहो तोख कुलोभ तम को तोलों है बास ।
जौलों नहिं रबि रूप तुम प्रगटत हृदै अकास ।।
प्रगटत हृदै अकास लाभ लघु मुद जुगुनू के ।
दुख दीनता मलीन उलूक रहैं ढिग ढूके ।।
बरनै दीनदयाल लोभ को कब भय देहो ।
तुम बिन सुख नहिं रंच सुनो सन्तोख अए हो ।। ५४।।