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सन्देश सुनू / जयनारायण झा 'विनीत'

सन्देश सुनू नवयुवक नव्य।
जीवन पतझड़क कुवृति त्यागु
त्यागू निरपेक्षा पतन-पुंज,
आत्मीय दृष्टिकरु, शौर्य-सलिल
सीचू, सुन्दर करु कर्म-कुंज
करु गत-गौरव शुचि सुधिवसन्त स्वागतसँ जीवन-विपिन भव्य।

जीवित जड़वत् छी आइ अहाँ
छी और शरद-तोयद अशक्त,
बनु विश्व-व्योम पावस-पयोद
गरजू, बरिसू, करु वीर्य व्यक्त,
बहि चलय वारि विक्रम अपार, हहरय आजुक संसार सभ्य।

लऽ आउ अमृत गंगाकधार,
भऽ रहल भ्रमित मनुवंश नाश,
गति-विधि बदलू जीवनक आइ
बनि जाउ भगीरथ वेद व्यास,
करु गुरु अतीत आदर्श द्रोण, आदर्श शिष्य बनु एकलव्य।

सभ्यता श्वेत सर्पिणिक आइ
खुलि हालाहलमय हेम दन्त,
जगकेँ कयने अछि अति अशान्त
अछि क्षमा-क्षेम कय रहल अन्त,
करु अपन शौर्य-संवाद श्रव्य, सन्देश सुनू नवयुगक नव्य।