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सपनवाँ नित सतावै / मनोज कुमार ‘राही’

सपनवाँ नित सतावै
मोॅर गउनवाँ भइलै ना
सपनवाँ नित

सोलह साल आरो कुछ महीना,
मोटी उमरिया ओ मोटे सजना,
यौवनवाँ नित सतावै,
मोर गउनवाँ भइलै ना,
सपनवाँ नित

चलूँ जब हम्में बेटी डगरिया,
लचकेलचक जाये मोरी कमरिया,
करमवाँ मोहेॅ सतावै
मोर गउनवाँ भइलै ना
सपनवाँ नित

केकरा से कहूँ दिलोॅ के बतिया,
करवट बदलतें नित बीतेॅ मोॅर रतिया,
सजनवाँ भइलै मोॅर बेगाना,
मोर गउनवाँ भइलै ना
सपनवाँ नित

चढ़ती जवानी नींद न आये,
जियरा में पिया के सुरतिया निखर आये,
कंगनवाँ नित बतावै
मोर गउनवाँ भइलै ना
सपनवाँ नित

लिखलोॅ न जानूँ कैसे लिखब पतिया,
हियरा में चुभै छै मोरी सारी बतिया,
मोॅर परनवाँ छूटल जाये,
मोर गउनवाँ भइलै ना
सपनवाँ नित