जिनगी बहुत नाराज रहल हे।
उलझन बीच मिजाज रहल हे।।
रट-रट खट-खट मरबइया पर।
गिरते दु:ख के गाज रहल हे।।
अनकर के सुख पर तितकी घर।
केतना मगन समाज रहल हे।।
ज़ोर-ज़ुलम के झण्डा ऊँचा।
अब तऽ एहे रिबाज़ रहल हे।।
सपना सब धइले ही रह गेल।
कल के जइसन आज रहल हे।।