रात को रोज
नए रंग में आते सपने!
नींद से मुझको
कई बार जगाते सपने!
मुझको ले जाते हैं
इंग्लैंड, कभी अमरीका,
रोम, पेरिस की
मुझे सैर कराते सपने!
कभी पर्वत के शिखर पर
तो कभी घाटी में,
कभी सागर की
तलहटी में घुमाते सपने!
ज्यों ही सोता हूँ, तो
बनता हूँ कोई राजकुँवर,
मेरे दरबार में
परियों को नचाते सपने!
फूल, आकाश, नदी
चाँद, सितारे, बादल,
सारी दुनिया को
मेरे पास बुलाते सपने!
जागने पर मुझे
सब भूलभूलैया लगता,
क्या करूँ मैं कि मुझे
नींद में भाते सपने!
सोचता हूँ कि ये दुनिया
भला कैसी होती,
नींद तो होती मगर
यों न लुभाते सपने!