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सपने और प्रेम-६ / रंजना जायसवाल

हजारों के बीच
अपने -आप को तलाशते जाना
कितना अजीब है
अजीब है कितना
पा लेने पर सोचना कि
जिसकी तलाश थी
वह मैं नहीं तुम थे
तुम