बहुत बार देखे
इन आँखों ने सपने
और बहुत बार देखा
टूटते हुए उन्हें
चटखते देखा
फिर देखा टूटते
किरचों में बँटते हुए
और किरचों को आँखों में चुभते
देखा बहुत बार
किरचों को देखा
लहू में तैरते हुए
अंगों में चलते हुए
जिस्म की गहराईयों तक उतरते
फिर जिस्म में साँस लेते
देखी काँच के टुकड़ों की फसल
सपने किरचों में बँटते हुए
जिस्म में उगते
देखे कितनी ही बार
पर नयन हैं बावरे
कि सपने देखने की
आदत नहीं तजते
सपने नहीं मरते ।
मूल पंजाबी से हिंदी में रूपांतर : स्वयं कवि द्वारा