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सपनों का धंधा / सरोज कुमार

सिनेमा मनभावन है
उसमें जैसी सुंदरी है, वैसी
मेरी बगल में नहीं है,
उसमें जैसा रोमांस है-
मेरे जीवन में नहीं है,
मेरे कंठ में नहीं हैं,
उसमें जो संसार है
मेरा ही सपना है,
उसी में समा जाने को आता हूँ!
परदे पर बार-बार
मैं ही इतराता हूँ!

सिनेमावालों,
तुम मुझे
और और मुगालते दो
मैं तुम्हें
और और धंधा दूंगा!