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सपनों की शहादत / वशिष्ठ कुमार झमन

दिमाग के अन्धेरे कोने में
मेरी बिखरी अस्मिता के बीच
कुछ सपने
शहीद होने वाले सिपाहियों की तरह
चढ़े जा रहे हैं
कुछ रुक गए हैं
कुछ उस अन्धेरे में मिल गए हैं
दिमाग की इस बेबसी पर
दिल…
पहूँचे हुए ज्ञानी की तरह
मुस्का कर
कह रहा है
“ग़म किस बात का है?
ये छोटे लोगों के सपने हैं
शहीद होना तो इनका धर्म है
निभाने दो इनको”