साँच लिये सतसंग किये, जो हिये हरिनाम निरन्तर लेते।
पाँचहुको परपंच गवो पचि, या मनको ममता नहि देते॥
धरनी कह राम प्रताप दशो दिशि, अस्तुति भाव कहरैं जन जेते।
काह कपूत बहूत भये होइ, एक सपूत तरे कुलकेते॥17॥
साँच लिये सतसंग किये, जो हिये हरिनाम निरन्तर लेते।
पाँचहुको परपंच गवो पचि, या मनको ममता नहि देते॥
धरनी कह राम प्रताप दशो दिशि, अस्तुति भाव कहरैं जन जेते।
काह कपूत बहूत भये होइ, एक सपूत तरे कुलकेते॥17॥