अजीब है
दश्त-ए-आगही का सफ़र
वफ़ा की रिदा में लिपटी
बरहना क़दमों से चल रही हूँ
तपे हुए रेगज़ार में भी
मगर चुभन है न पाँव में कोई आबला है
थकन का नाम ओ निशाँ नहीं है
अजीब है
दश्त-ए-आगही का सफ़र
वफ़ा की रिदा में लिपटी
बरहना क़दमों से चल रही हूँ
तपे हुए रेगज़ार में भी
मगर चुभन है न पाँव में कोई आबला है
थकन का नाम ओ निशाँ नहीं है