सफल कवि की पहचान है उसकी आंखों में
गहरा दुनियादार आत्मविश्वास गालों में
हलकी-सी लाली हलके कदमांे से वह विचरता है
इस दुनिया से दूर अपने आप में
एक तटस्थ प्रेक्षक की तरह
नहाते हुए वह लिखता है एक कविता
टहलते हुए दूसरी
तीसरी अपने अध्ययन कक्ष में पढ़ते हुए इलियट
उन पर टीप देता है समय ठीक-ठीक
गणितज्ञ की तरह वह ठीक-ठीक जानता है गिनती
कितनी किस बरस किस महीने लिखी गईं
कितनी आने वाले समयों में लिखी जानी हैं
जब भी मिलता है चौराहे पर जल्दबाजी के बावजूद
वह अपनी किसी न किसी नई रचना पर काम
कर रहा होता है छूटते ही बताएगा
तीन रचनाएं ‘क’ में स्वीकृत छह ‘ख’ में
दो ‘ग’ में आ रही हैं अगले ही हफ्ते
सफल कवि जब भी करता है अपनी रचनाओं की बात
करता है बाकी सारा संसार उसके लिए
मिथ्या है माया हालांकि रचनाओं पर पकड़
के लिए साहित्य की दुनिया में जो अकड़
चाहिए वह उसमें खूब है
मित्र आलोचकों और साहित्य के डाक्टर
औरांगउटांगों की कृपा से बहुत-कुछ है उसके पास
गर्व करने लायक अपनी कविताओं पर खुद
टिप्पणियां लिखवाकर भेजता है वह अखबार को
खुद चिपकाता है उन पर पाद टिप्पणियां
मित्र मंडलियों में खंखारकर गला वह बताता है
कि उसकी एक भी कविता अप्रकाशित नहीं अब तक
जितनी छपी हैं किताबें सारी पुरस्कृत
पुरस्कार लेते हुए सभामंच पर वह कहता है
इत्मीनान से आजकल मुझे खेद है हिंदी में
अच्छी कविता नहीं लिखी जा रही मेरा तो संदेश
है हिंदी जगत को कि कविता ही मुक्ति है लिखो लिखो
लिखते रहो
वह जानता है उसके दुश्मन (घुसे हुए पत्रकारिता में)
उसे ठीक-ठीक कोट नहीं करेंगे
मगर निश्चिंत है कि
अपने मित्रों को पहले ही पकड़ा जा चुका होता है
दुधारा
उसका सारा कार्य
व्यापार इसी दुधारे से चलता है
कि किसको उठाना गिराना गिराकर उठाना
उठाकर गिराना है कब और कहां
अपने दोस्तांे और दुश्मनों के बारे में उसकी
पक्की रय है जो कभी टस से मस
नहीं होती अलबत्ता
दोस्त और दुश्मन बदलते रहते हैं
जगहें
विष को विष ही काटता है अक्सर वह
कहता है हंसकर कहता और हंसता है।
अक्सर जब भी देखो कविता के भीतर और बाहर
वह विष उगलता हंसता ही मिलता है
बस, हंस नहीं पाता तो सिर्फ अपने
कारुणिक अंत पर
जिसे वह कभी देख ही नहीं पाता
यह कितना दिलचस्प है कि
सफल कवि का अंत
करता है एक उससे भी ज्यादा
सफल कवि
और सफल कवियों के झगड़े में
कुछ नहीं बिगड़ता कविता का
वह कटे सिरों और व्यूहों वाली रणभूमि के बाहर
दूसरे छोर पर बहती है।