Last modified on 11 दिसम्बर 2022, at 20:32

सफ़र पर जाते समय / अमरजीत कौंके

सफ़र पर जाते समय
घर से निकलता हूँ जब
लगता है जैसे
कुछ छूट गया है

रुमाल, पेन
घड़ी, मोबाइल, पर्स
सब कुछ तो पास है
लेकिन फिर भी लगता है
जैसे कुछ रह गया है

रह गया है ख़्याल कोई
मेज़ पर पड़ा
किसी किताब में छिपा
अहसास कोई रह गया है
पुरानी कमीज की जेब में
रह गया है विचार कोई
शब्दकोश में छूट गया है
शब्द कोई

सब कुछ कहाँ साथ
ले जा सकता है आदमी।