जिस इश्क की खा़तिर था गँवाया सब कुछ,
उस इश्क को ही आज, हम गँवा आए!
लुटा के सब,
लौट आए हैं,
उसी दुनिया में,
जहाँ न ग़म है अब,
न ज़िंदगी का कोई सबब...
बस एक सूनेपन का सागर है,
सफीना<ref>कश्ती, नाव</ref> डूब रहा है जिसमें!
मार्च 1996
शब्दार्थ
<references/>