कई शहरों, ठिकानों और बेनाम जगहों से गुज़रती हैं जो
दाएँ-बाएँ मुड़ती कभी
मीलों सीधे क्षितिज को छूती
कभी चौड़ी होती कभी हो जाती सँकरी
कभी घुमाव लेती उतरती ढलानों पर
अंतहीन दो जुड़वाँ सड़कें
लम्बी दूरी की रात्रि-बसें
ढाबे,सूखी रोटियाँ और तीन बजे रात दाल फ़्राई
पीछे कहीं अंधेरे में खेत
वनस्पतियों की ठण्डी गंध
ऊंघ रहा है बिजूखा कहीं
तारों से भिदे आकाश नीचे
08.11.1991