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सफेदी रोॅ पौधा / शिवनारायण / अमरेन्द्र

कल भोरे
जखनी जाय रहलोॅ छेलियै
फुटपाथोॅ पर
साथी-परिचितोॅ के भीड़
कहीं पीछू ठहरी गेलोॅ छेलै,
प्रशंसा केरोॅ गीत
ठण्डा पड़ी चुकलोॅ छेलै
आरो हुनका सिनी के आवाजोॅ के रस
आनेॅ कबेॅ सूखी चुकलोॅ छेलै।

हम्में होलेॅ-होलेॅ
जाय रहलोॅ छेलियै
धूल कणों पर नजर फेरतें
तभिये हमरा लागलै
चलेॅ लागलेॅ छै कोय्यो
हमरोॅ कदम-सेॅ-कदम मिलाय केॅ
हम्में एकोसी नजरी सें
देखलियै,
दायां, बायां
ठीक हमरे पंक्ति में
तीन बगरो

फुदकतें चली रहलोॅ छेलै
हवा हमरोॅ साथे बढ़ी रहलोॅ छेलै
गाछोॅ के छाँव
सिर के ऊपरे-ऊपर
सरकी रहलोॅ छेलै
आरो भावोॅ के तरलता
हमरा रस सें सराबोर करी रहलोॅ छेलै।

आय नै हमरोॅ मित्र छै
नै हुनका सिनी के ऊ प्रशंसा-गीत
जिनकोॅ वास्तें
अपनोॅ सब्भे कुछ गलैलेॅ छेलियै
हुनका सिनी केॅ
कहाँ-सेॅ-कहाँ पहुँचाय देलेॅ छेलियै
मजकि ई बगरो सिनी
ई हवा, छाँव आरो भाव
अभियो हमरोॅ साथें चली रहलोॅ छै
जिनका दिश कभियो
फुर्सत सेॅ देखलो नै छेलियै।

जानेॅ तेॅ कोॅन रिश्ता सें
ई सब हमरा सें बंधलोॅ छै
हठासिये
हमरोॅ गोड़ थिर होय जाय छै
सामना है, एकटा सफेदी रोॅ पौधा
तनी केॅ ठाढ़ोॅ
अभिमानोॅ साथें ताकी रहलोॅ छेलै।

कल तांय आपनोॅ ऊपर
मजाक करतैं
आसपास के ऊ गाछी सिनी केॅ
जे पिछला राती ऐलोॅ
आंधी के कारणें
हिन्नें-हुन्नें ढही गेलोॅ छेलै।

तखनिये हमरोॅ भीतर
मलका रं मलकी गेलै
सामना के दृश्य
जानेॅ तेॅ
जीवन केॅ कत्तेॅ-कत्तेॅ अर्थ खोली गेलै।

सफेदी-रोॅ पौधा
जत्तेॅ ढकमोरै छै बाहर
ओकरोॅ जोॅड़
ओत्है फैललोॅ रहै छै
माँटी के भीतरो
यही लेॅ, नै होय छै कभियो
ओकरा आँधी-पानी रोॅ डोॅर!

आपनोॅ लघुता सें
सफेदी के ई पौधा
दिखाय गेलै हमरा जिनगी रोॅ प्रभुता।