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सबसे अच्छी रेल भली / प्रभुदयाल श्रीवास्तव

सबसे अच्छी रेल भली
रेल चली भई रेल चली,
पटरी पटरी रेल चली।

पहले तो थी कोयले वाली,
भक् भक्-भक् भक् चलती थी।
कोयला खाती पानी पीती,
काला धुंआ उगलती थी।
किंतु हाय अब बिजली वाली,
कैसी रेलम पेल चली।
घंटे भर में मील डेड़ सौ,
रेलें अब तो चल लेतीं।
नहीं कहीं अब कोयला खातीं,
ना ही हैं अब जल पीतीं।

बिना रुके मीलों जाती हैं,
करतीं करतीं खेल चलीं
जाना है तो महिनों पहले,
टिकिट हमें लेना पड़ता।
नहीं जगह रहती है
तिल भर, आरक्षण लेना पड़ता।
सारी सुविधाएँ मिलती हैं,
सबसे अच्छी रेल भली