सूरज के साथ में
सबेरे की आग है
पूरब में पैदा हुआ जीवन का राग है
पंखों के उड़ने का अंबर में नाद है
कोयल की बोली से झरता प्रमाद है
किरनों के मेले में गाता प्रकाश है
बीना-सा बजता हुआ
मौसम का
श्वास है।
रचनाकाल: ०८-१०-१९७५
सूरज के साथ में
सबेरे की आग है
पूरब में पैदा हुआ जीवन का राग है
पंखों के उड़ने का अंबर में नाद है
कोयल की बोली से झरता प्रमाद है
किरनों के मेले में गाता प्रकाश है
बीना-सा बजता हुआ
मौसम का
श्वास है।
रचनाकाल: ०८-१०-१९७५