धीरे-धीरे सब ठीक हो जाएगा
बीत जाएगी रात
होगी सुबह
अमावस के बाद फिर छिटकेगी
चाँदनी
सब ठीक हो जाएगा एक दिन
ख़त्म होगा पतझड़
बरसेगा पानी
भर जाएगी नदी की सूखी छाती
ठूँठ पर उगेगी कोंपल
लहलहाएगी फ़सल
सब ठीक हो जाएगा
एक दिन मिलने लगेगा काम
मिलेगी पूरी मजूरी
भरने लगेगा परिवार का पेट
ठीक हो जाएगा सब
बन्द हो जाएगा आँसुओं का झरना
मुस्कुरा उठेंगी आँखों की कोरें
घर के आँगन में खेलेंगी
ख़ुशियाँ
सब कुछ ठीक हो जाएगा
रात में देखे सपने
पूरे होंगे दिन में
कम हो जाएगी
धरती और आकाश की दूरी
तारे होंगे हाथों के क़रीब
धीरे-धीरे सब ठीक हो जाएगा
बस एक आस ही साथ रहती है सदा
और इसी उम्मीद में
एक दिन धीरे से पीछे छूट जाती है
ज़िन्दगी