छलिया चाँद देखेगा
किवाड़ों से, बिना किसी सन्ताप के
कि कैसे उस साँझ में
बदल गई थी मैं अपने ही मरणोपरान्त यश में
अब
भूल जाएँगे वे मेरा नाम
भूल जाएँगे वे मेरी किताबें
अलमारियों में क़ैद
कोई नहीं रहेगा
अख़्मातवा की गली में
कोई नहीं लिखेगा
फिर अख़्मातवा के छन्द
मूल रूसी भाषा से अनुवाद : सुधीर सक्सेना