सब हैं व्यस्त
संकट-ग्रस्त
सब तरह से पीड़ित त्रस्त
फुरसत किसे है अब कहाँ
पास आए
बैठे यहाँ
कहे अपनी, सुने मेरी
खुश हो
और खुश बनाए।
रचनाकाल: १७-०९-१९९१
सब हैं व्यस्त
संकट-ग्रस्त
सब तरह से पीड़ित त्रस्त
फुरसत किसे है अब कहाँ
पास आए
बैठे यहाँ
कहे अपनी, सुने मेरी
खुश हो
और खुश बनाए।
रचनाकाल: १७-०९-१९९१