♦ रचनाकार: अज्ञात
भारत के लोकगीत
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सभा पैसी जोही एक लएलनि, कएलनी लेलिन बुढबा जमाएगे माई
बसहा चढल शिव डमरु बजाबथी, अगँ मे भस्म रमाये गे माई
अगँने अगँने शिव भीख मगै छथि, देहरी पर धुनिया रमाये गे माई
जटा देखी गौरी थर थर काँपथि, बिभुत देखी के डराई गे माई
सौतीन देखी गौरी मन मन सोचथि, किय लय करबै सुख विलास गे माई
जटा छैक गौरी सिरके लपेटब, से विभुत छैक, अहिबात गे माई