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सभ्यता-1 / अरुण देव

स्त्री के बालों से डरती है सभ्यता
उसकी हँसी से
उसकी देह की बनावट से
उसके होने भर से थरथराने लगती है

सभ्यता का अर्थात
स्त्री की पीठ है ज़ख़्मों से अँटी